आषाढ़ मास (Aashaadh Maas) में पडने वाली पूर्णिमा (Purnima) को गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima) कहते हैं। भारत (India) अौर नेपाल (Nepal) में गुरु पूर्णिमा व्रत (Guru Purnima Vrat) बड़ी श्रद्धा से मनाया जाता है। इस दिन गुरु की पूजा (Guru Puja) का विधान है, आईये जानते हैं गुरू पूर्णिमा का महत्व (Guru Purnima Ka Mahatva) -

गुरु पूर्णिमा का महत्व - Guru Purnima Ka Mahatva
गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima) के दिन गुरु की वंदना (Guru Vandana) और आराधना (Aradhana) की जाती है, मान्यता है कि आषाढ़ मास (Aashaadh Maas) में पडने वाली पूर्णिमा (Purnima) को महाभारत, 18 पुराणों व 18 उप पुराणों की रचना करने वाले और वेद ऋचाओं का संकलन कर वेदों को चार भागों में बांटने वाले कृष्ण द्वैपायन व्यास (krishna dwaipayana vyas) का जन्मदिन भी है, चूंकि व्यास जी ने वेदों की रचना की थी, इसलिये व्यास जी वेदव्यास (Ved Vyas) से भी विख्यात हैं। उन्हीं के सम्मान में गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima) को वेद व्यास जयंती (Ved Vyas Jayanti) या व्यास पूर्णिमा (vyas purnima) के नाम सेे भी जाना जाता है।
गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वर, गुरु साक्षात् परमं ब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम: यानि गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है। गुरु ही साक्षात परब्रह्म है। ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूं।
अपने गुरू का सम्मान (Guru ka Samman) करने के लिये इससे अच्छा दिन और कोई हो ही नहीं सकता, प्राचीन काल से इस दिन विद्यार्थियों द्वारा अपने-अपने गुरूओं का सम्मान किया जाता है, इस दिन गुरू को गुरूदक्षिणा दी जाती है, गुरुदक्षिणा (Guru Dakshina) गुरु के प्रति सम्मान व समर्पण भाव है, उनका आदर सत्कार किया जाता है और गुरू का आर्शीवाद (guru ka aashirwad) लिया जाता है।
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