प्रत्येक माह की त्रयोदषी को प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) किया जाता है, इस दिन शिव जी पूूजा की जाती है, इसलिये इसे शिव प्रदोष व्रत (Shiv Pradosh Vrat) भी कहते हैं, ऐसा माना जाता है कि प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) रखने वाले दो गायों के दान के बराबर पुण्य मिलता है, बृहस्पतिवार या गुरूवार को पडने वाला प्रदोष व्रत गुरू प्रदोष व्रत (Guru Pradosh Vrat) होता है गुरु प्रदोष व्रत करने से शत्रुओं का विनाश हो जाता है।, तो आईये जानते हैं- गुरू प्रदोष व्रत विधि और कथा - Guru Pradosh Vrat Vidhi And Katha In Hindi
बृहस्पतिवार या गुरू प्रदोष व्रत का महत्व - Guru Pradosh Vrat Ka Mahatwa
What is Pradosh Vrat - क्या है प्रदोष व्रत
प्रत्येक महीने की त्रयोदशी तिथि के सॉयकाल केे समय को प्रदोष काल कहा जाता है, ऐसा माना जाता है कि प्रदोष के समय भगवान शिव जी कैलाश पर्वत पर प्रसन्न मुद्रा में नृत्य करते हैं और समस्त देवी-देवता उनकी स्तुति करते हैं, प्रदोष काल में शिव जी की आराधना करने से समस्त प्रकार के दुखों से मुक्ति मिलती है।
गुरु प्रदोष व्रत शत्रुओं के विनाश के लिए किया जाता है। गुरुवार के दिन होने वाला प्रदोष व्रत सौभाग्य और दाम्पत्य जीवन की सुख-शान्ति के लिए के साथ-साथ सभी मनोकामनाएं पूर्ण करने वाला होता है।
गुरू प्रदोष व्रत कथा Guru Pradosh Vrat Katha
एक बार देवताओं के राजा इन्द्र और राक्षस वृत्रासुर की सेना में घनघोर युद्ध हुआ । देवताओं ने दैत्य सेना को पराजित कर दिया। यह देख वृत्रासुर क्रोधित होकर स्वयं युद्ध करने आया। उसने अपनी माया से देवताओं को भयभीत कर दिया। तब सभी देवता गुरुदेव बृहस्पति की शरण में गए। गुरु बृहस्पति ने इंद्र को बताया कि वृत्रासुर बड़ा तपस्वी और कर्मनिष्ठ है। उसने तपस्या कर शिवजी को प्रसन्न किया है। पूर्व समय में वह चित्ररथ नाम का राजा था। एक बार वह अपने विमान से कैलाश पर्वत चला गया।
वहां शिवजी के साथ माता पार्वती को देखकर उसने शिव-पार्वती का उपहास किया। जिससे माता पार्वती क्रोधित हो गई और उन्होंने चित्ररथ को श्राप दिया कि तू दैत्य स्वरूप धारण कर विमान से नीचे गिर जाएगा और राक्षस योनि प्राप्त करेगा। राक्षस होने के बाद भी वृत्तासुर बाल्यकाल से ही शिवभक्त रहा। इसलिए इंद्र तुम गुरु प्रदोष व्रत कर शंकर भगवान को प्रसन्न करो। इंद्र ने गुरुदेव की आज्ञा का पालन कर ये व्रत किया। गुरु प्रदोष व्रत के प्रताप से इन्द्र ने शीघ्र ही वृत्रासुर पर विजय प्राप्त की।
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