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Ganesh Chaturthi Ka Mahatva - गणेश चतुर्थी का महत्व

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गणेश चतुर्थी (ganesh chaturthi) भाद्रपद महीने (Bhadon Month) की शुक्‍ल पक्ष (Shukla Paksh) की चतुर्थी तिथि (Chaturthi tithi) कोमनाया जाता है, हिन्‍दु धर्म के अनुसार इस दिन भगवान गणेश (bhagwan ganesh) का जन्‍म हुआ था, गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) हिन्दुओं का प्रमुख त्योहार है। गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) को महाराष्ट्र के साथ-साथ पूरे देश में मनाया जाता है आईये जानते हैं गणेश चतुर्थी का महत्व (Ganesh Chaturthi Ka Mahatva)-

गणेश चतुर्थी का महत्व - Ganesh Chaturthi Ka Mahatva


गणेश जी शिवजी और पार्वती के पुत्र हैं। हाथी जैसा सिर होने के कारण उन्हें गजानन भी कहते हैं, इनका वाहन मूषक यानि चूहा है और गणेश जी मोदकबहुत पंसद हैं, किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले गणेश जी नाम लिया जाता है, गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) को गणेश जी का जन्‍म हुआ था इस दिन लोग गणेश जी की मूर्ति को घर में स्‍थापित करते हैं, इस दिन व्रत रखने से विध्‍नहर्ता गणेश प्रसन्न होकर समस्त विघ्न और संकट दूर कर देते हैं। 

भगवान गणेश जन्म की कथा - Lord Ganesha Birth Story

गणेश चतुर्थी भगवान श्री गण्‍ोश के जन्‍म के उपलक्ष में मनायी जाती है, इसके संबध में एक बहुत रोचक पौराणिक कथा है - एक दिन माता पार्वती ने स्नान करने से पूर्व अपनी मैल को एक बालक की मूर्ति बनायी और उसमें प्राण प्रतिष्ठा की। जिससे वह मूर्ति जीवित हो गयी, माता ने उस बालक को अलौकिक शक्तियॉ दी और साथ यह भी आज्ञा दी कि वह स्‍नान करने जा रही है कोई भी अंदर प्रवेश न करे। माता की आज्ञा मानकर वह बालक द्वार पर पहरा देने लगा, जब कुछ समय बाद शिवगण आयें और अदंर प्रवेश करने लगे तो बालक ने उन्‍हें रोका, शिवगणों उस बालक को नहीं जानते थे, इस कारण बालक से युद्ध करने लगे, बालक ने सभी का पराजित कर दिया, जब इस बात का पता शिव जी चला, तो शिव जी वहॉ आये तो बालक ने उन्‍हें भी अंदर प्रवेश करने से रोका, अपने ही घर में प्रवेश करने के लिए रोके जाने पर शिव जी के क्रोध का ठिकाना ना रहा और क्रोधवश उन्‍होनें अपने त्रिशूल से सर काट दिया, शोर सुनकर माता पावर्ती बाहर आयीं और बालक को मृत देखा तो उनको बहुत क्रोध आया, उन्‍होने बालक को पुनर्जिवित करने के लिये कहा। शिव जी ने कहा कि त्रिशूल कटा सर पुनः धर से तो नहीं जोड़ा जा सकता है किन्‍तु दूसरा सर अवश्‍य जोडा सकता है, उन्‍होनें अपने गणों को आदेश दिया कि वह किसी ऐस बालक का सर लेेकर आये जिसकी माता उससे पीठ करके सो रही हो, गण जब जंगल में गये तो एक हथिनी अपने बच्‍चे से पीठ करके सो रही थी, गण उसी का सर काट कर ले आयें, शिव जी ने हाथी के बच्‍चे सर सूँड़-समेत बालक के शरीर से जोड़ दिया और इस प्रकार बालक के शरीर में पुनः प्राणों का संचार हुआ। 
इसी के साथ उस बालक अपने गणों को सेनापति बनाया, गणों के स्वामी होने के कारण्‍ा उस बालक का नाम गणेश और गणपति पडा, जिस नाम से हम आज भी उसकी पूजा करते हैं, साथ ही यह भी आर्शीवाद दिया कि किसी भी श्‍ाुभ कार्य को करने से पहले गणेश की पूजा की जायेगी। 

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