वर्ष में दो बार वसंत पंचमी (Vasant Panchami) और नवरात्रि सप्तमी (Navratri Saptami) के दिन सरस्वती पूजा (Saraswati Puja) का विशेष महत्व (Mahatva) होता है। विशेष तौर पर दक्षिण भारत में सप्तमी के दिन सरस्वती आवाहन (Saraswati Avahan) किया जाता है और विजयादशमी (Dussehra) के दिन सरस्वती विसर्जन (Saraswati Visarjan) किया जाता है, आईये जानते हैंं - सरस्वती आवाहन और पूूजा का महत्व Saraswati Avahan Aur Puja Ka Mahatva -

सरस्वती आवाहन और पूूजा का महत्व - Saraswati Avahan Aur Puja Ka Mahatva
हिंदू धर्म में ब्रह्मा की मानसपुत्री माता सरस्वती (Mata Saraswati) को ज्ञान की देवी ( Goddess of wisdom ) माना जाता है, ऐसी मान्यता है कि संगीत के सात स्वर भी माता सरस्वती के वीणा (Veena) से ही उत्पन्न हुए थे, इस कारण यह संंगीत की देवी भी हैं। इन्हें कई नामों से जाना जाता है जिसमें शारदा, शतरूपा, वाणी, वाग्देवी, वागेश्वरी, भारती प्रमुख नाम हैं। भारत के अलावा थाइलैण्ड, इण्डोनेशिया, जापान, बर्मा, चीन देशों में भी सरस्वती पूजा की जाती है। कहते हैं माँँ सरस्वती की उपासना करने से मनुष्य की बौद्धिक क्षमता का विकास होता है। कई स्कूलों में आज भी पढाई प्रारंभ करने से पहले सरस्वती वंदना और आराधना की जाती है।
इसी कारण भारत के दक्षिणी भाग में नवरात्रि (Navratri)सप्तमी (Saptami) के दिन सरस्वती आवाहन (Saraswati Avahan) किया जाता है और तीन दिन यानि सप्तमी, अष्ठमी और नवमी के दिन सरस्वती पूजा की जाती है और विजयादशमी (Dussehra) के दिन सरस्वती विसर्जन (Saraswati Visarjan) किया जाता है।
सरस्वती वंदना मंत्र - Saraswati Vandana Mantra
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥1॥
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्।
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्॥2॥
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